सिंदबाद , मैजिकल लाइफ
आपने किस्से कहानियां तो बहुत सुने होंगे.. पुराने वक्त में सबसे ज्यादा रहस्यमय, रोमांचकारी और हैरतअंगेज कहानियां सबसे ज्यादा मेरी ही सुनी होगी। मुझे ऐसे ही रहस्यमय और हैरतअंगेज कारनामे करने का शुरू से ही शौक रहा था , मैं हूँ सिंदबाद , और ये है मेरी मैजिकल लाइफ जिसको मैं आपको सुनाऊंगा । मैं बचपन से ही बहुत ही ज्यादा शैतान और मां बाप के लिए सर दर्द रहा था। उन्हें हमेशा मेरे आने वाले कल की चिंता रही थी.. उन्हें यह चिंता मन ही मन खाए जाती थी। जिसके कारण उन्होंने जल्दी मेरा साथ छोड़ दिया था। अच्छी खासी दौलत विरासत में मिली थी मुझे.. पर कहते हैं ना कि विरासत में मिली चीजों की कद्र नहीं होती..मुझे भी नहीं हुई। मैंने बहुत से दरियाई सफर किए.. ये सफर अंग्रेजी वाले सफर नहीं.. बल्कि उर्दू वाले सफर थे। पहली बार जब बहुत ही हैरतअंगेज कारनामे मेरे साथ हुए.. तो किसी तरह ऊपर वाले के कारण सही सलामत घर पहुंचा। पर जब एक बार जान पर खेलने की लत लग जाए.. तो वह लत कब जुनून बन जाती है.. पता ही नहीं चलता। यही मेरे साथ भी हुआ.. मैंने एक दरियाई सफर किया.. उसके बाद दूसरा.. उसके बाद तीसरा और ऐसे ही बहुत से सफर किए। हर एक सफर की दिलचस्प कहानियां और किस्से..!! ऐसे ऐसे जानवर,हैवान और आफरीद देखने को मिले.. जिन्हें देखकर कभी भी यह यकीन ही नहीं होता के असलियत में ऐसी शह ऊपर वाले ने बनाई भी होंगी। कई बार उनका निवाला बनते बनते बचा हूं। कई बार मौत के दरवाजे पर पहुंच कर वापस आया। शायद अब आप मुझे पहचान गए होंगे.. मैं वो हूं जिसके बारे में सबसे ज्यादा हैरतअंगेज किस्से कहे और सुने जाते रहे हैं। पीढ़ियों से यह किस्से ऐसे ही सुने और कहे जाते रहे हैं.. और शायद आने वाली पीढ़ियां भी इन्हीं को सुनकर अपना बचपन गुजरेगी। पहचाना अब कि मैं कौन हूं..?? नहीं..!! तो कोई बात नहीं मैं अपने बारे में एक और बात बताना चाहता हूं। हो सकता है.. आप उससे मुझे पहचान पाए..!! मैं एक ऐसा व्यापारी रहा जो काफ़ी दौलत होने के बाद भी केवल बस अपने जुनून के लिए सफर करने का आदी हो गया था। जी सही पहचाना आपने..!! मैं हूं आपका अपना सिंदबाद..!! जिसे आप लोग सिंदबाद जहाजी के नाम से भी जानते हैं!! हां.. वही सिंदबाद जहाजी.. जिसने बहुत सी समुद्री यात्राएं और उनसे जुड़े हैरतअंगेज किस्से आपको लुभाते और अपनी तरफ खींचते हैं। लोगों ने मेरे बारे में बहुत कुछ लिखा और पढा.. पर मुझे लगता है.. किसी ने भी अभी तक मेरे साथ इंसाफ नहीं किया। इसलिए मैंने सोचा कि मैं खुद से आप लोगों के रूबरू आऊं.. और आप लोगों को अपना किस्सा.. अपनी जबानी सुनाऊं। अपनी इस किस्सागोई में.. मैं पूरी पूरी कोशिश करूंगा कि लोगों को कहीं भी बोरियत या किसी भी तरह की काहिली ना आए। मैंने अपने किस्से खुद जिये हैं। मैं खुद उन किस्सों का एक हिस्सा रहा हूं.. तो शायद आप सब इन्हें पसंद करें। तो अब हम शुरुआत करते हैं मेरी कहानियां.. मेरे किस्से..!! वहां से जहां मैं एक छोटा बच्चा था.. शैतान और शरारती..!! मैं बचपन से ही बहुत ही ज्यादा शरारती बच्चा रहा हूं.. जब मैं 8 साल का था.. तो मेरे अब्बा हुजूर ने मुझे कुछ इल्म और दीन की बातें सीखने के लिए एक मदरसे में भेजना शुरू किया। मैं बहुत ही ज्यादा शरारती था.. इसलिए मेरे अब्बा हुजूर ने मौलाना साहब को साफ-साफ लफ्जों में मेरे शैतानी के किस्से सुना दिए थे.. और उन्हें मुझ पर खास नजर रखने के लिए भी ताकीद किया था। उन्होंने मौलाना साहब से परेशान होते हुए कहा, "मौलाना साहब..! यह मेरा लड़का सिंदाबाद है। बचपन से ही मां के लाड प्यार ने इसे बहुत ही ज्यादा शैतान और शरारती बना दिया है। मैं चाहता हूं.. आप इसे अपनी पनाह में ले और कुछ ईमान की बातें इसे सिखाएं। इसे अल्लाह के बहुत ही ज्यादा कारसाज और दयालु होने के बारे में भी बताएं। जिस तरह की इसकी हरकतें हैं.. मुझे लगता है यह बड़ा होकर अल्लाह के नेक रास्ते पर तो चलने से रहा। मेरी आपसे यह इल्तजा है.. कि आप इसे नेक रास्ता दिखाएं।" ऐसा कहकर मेरे अब्बा हुजूर ने मुझे मौलाना साहब के हवाले कर दिया। मौलाना साहब ने भी मेरे अब्बा हुजूर को यकीन दिलाया कि वह मुझे हर तरह की सीख देंगे और एक नेक इंसान बनाने का की कोशिश करेंगे। वह मदरसा आम मदरसों की जैसे ही अल्लाह की ख्वाबगाह थी। हमारे शहर की सबसे बड़ी मस्जिद.. जहां पांचों वक्त की नमाज अदा करने भारी तादात में लोग आते थे। कहा जाता था कि वहां पर अदा की गई हर नमाज को अल्लाह खुद कुबूल करते थे। खूबसूरत नक्काशीदार दरवाजे और झरोखे थे वहां। गुंबद और मीनारें उस मस्जिद की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी। वहां के रंगों का इंतिखाब भी इतना बेह्तरीन था के देखने वाला खो जाए। मौलाना साहब ने भी मेरे अब्बा हुजूर को दिलासा देते हुए कहा, "बिल्कुल शहरयार साहब..!! मैं अपनी तरफ से जी जान लगा दूंगा.. आपके बच्चे को एक नेक और इमानदार आदमी बनाने के लिए। लेकिन यह सब तभी मुमकिन होगा.. जब आप इसे अल्लाह की पनाह में छोड़ दें। जब तक इसकी तालीम पूरी ना हो.. तब तक के लिए यह यही मदरसे में ही रहेगा। आप लोग चाहे तो हफ्ते में एक बार आकर इससे मिल सकते हैं और महीने में एक बार सिंदबाद दो दिनों के लिए आपके घर जाकर रह सकता है।" मेरे अब्बा हुजूर ने मौलाना साहब की बात खुशी-खुशी मान ली और मुझे वही छोड़कर हमारे घर चले गए। मैंने भी ठान लिया था कि कैसे भी करके इन मौलवी साहब से भी अब्बा हुजूर को बुलवा ही लूंगा.. ताकि यह खुद मुझे वापस भेज दें। उसी दिन से मैंने कमर कस ली थी। मैंने हर एक मुकम्मल कोशिश की.. जिससे मौलाना साहब मुझे धक्के मारकर मदरसे से बाहर निकाल दें। पर मेरी बदकिस्मती.. मौलाना साहब भी अपनी धुन के बड़े ही पक्के निकले। मेरी हर एक शैतानी को उन्होंने अच्छे से समझा और अच्छे से मेरी मरम्मत भी की। एक दिन मैंने मेरे ही साथ पढ़ने वाली एक लड़की ताजिया की चोटी में एक मुर्गी बांध दी। जिसके कारण बेचारी को कम से कम दस दिनों तक बिस्तर में पड़े रहना पड़ा। यही नहीं उसे मुर्गियों से भी अरहेजी हो गई थी। इतने पर भी मौलाना साहब ने मुझे अपने घर नहीं भेजा। फिर कुछ दिनों तक मैंने सब्र किया और मदरसे में जितने भी शैतान लड़के थे.. उनके साथ दोस्ती की और मदरसे की ईट से ईट बजाना शुरू कर दिया। फिर भी मौलवी साहब ने मुझे घर नहीं जाने दिया। बड़ी से बड़ी परेशानी पैदा करने के बाद भी जब मुझे घर जाने की इजाजत नहीं मिली.. तो मैंने दूसरा रास्ता इख्तियार किया। उस रास्ते के हिसाब से मुझे मौलाना साहब का सबसे पसंदीदा और शरीफ बच्चा बनकर दिखाना था। मैंने उसी रास्ते पर अपने कदम बढ़ा दिये। धीरे-धीरे मैंने भी वहां पढ़ाने वाले सभी मौलानाओं का दिल जीत लिया। उन्हें यकीन दिला दिया कि मुझसे शरीफ बच्चा इस पूरी कायनात में उन्हें देखने नहीं मिलेगा। थोड़े वक्त के बाद ही मौलाना साहब को मेरे ऐसे शराफत भरे अंदाज से खुशी हुई। उन्हें यह भी अंदाजा हो गया कि मैंने दीन और ईमान को अच्छे से पूछ और परख लिया.. तो उन्होंने एक दिन मेरी परीक्षा लेने का मन बना लिया। मुझे भी अपने काबिल और एतमाद से पता चल गया कि मौलाना साहब मेरी परीक्षा लेना चाहते थे। मैंने भी अपने आप को उसी हिसाब से तैयार करना शुरू कर दिया। दो ही दिन के बाद मौलाना साहब ने मेरी आजमाइश का वक्त मुकर्रर किया था और मैंने भी उन्हीं के खेल में उन्हीं को मात देने की पुरजोर कोशिशें शुरू कर दी थी। जल्दी ही वह दिन भी आ गया जिस दिन से अपनी आज़माइश देनी थी। मैं उस दिन अपनी जमात में बैठा कुरान की आयतें पढ़ रहा था कि एक लड़के ने आकर मुझे मौलाना साहब का पैगाम सुनाया। उस लड़के ने कहा, "देखो सिंदबाद..!! मौलाना साहब ने तुम्हें मस्जिद के बाहर चौराहे पर बुलाया है। तुम जल्द से जल्द वहां पहुंचो और उन से मिलो। इतना कहकर वो लड़का वहां से चला गया मुझे भी मौलाना साहब की आजमाइश का अंदाजा तो था। इसीलिए मैंने बिना गवाएं जहां मौलाना साहब ने मुझे बुलाया था.. पहुंच गया। मैंने चारों तरफ देखा तो वह चौराहा शहर का सबसे भीड़भाड़ वाला चौराहा था। चारों तरफ रोजाना काम में आने वाली चीजों की दुकानें लगी थी। कपड़ों की, इत्र की, जेवरों की और ना जाने किन-किन चीजों की बिक्री उस बाजार में हो रही थी।
Mohd Qasim
27-Aug-2023 01:07 PM
Nice 👍
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RISHITA
06-Aug-2023 09:53 AM
Nice one
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Babita patel
04-Aug-2023 05:55 PM
Nice
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